सीतामढ़ी के गांव-गांव से जुड़ी हैं मां सीता के निर्वासन की स्मृतियां
लालू प्रसाद यादव, संवाददाता, नवादा
नवादा/बिहार :- रामायण काल की सीता की निर्वासन स्थली कहां है? इस बात पर श्रृषि और पुरातत्वविद एक मत नही हैं। लोग इसकी व्याख्या अपने अपने हिसाब से करते रहे हैं। लेकिन जिले के लोग सीतामढ़ी को ही सीता की निर्वासन स्थली मानते हैं। सीतामढ़ी और इसके आसपास उपलब्ध प्राचीन साक्ष्यों और गांवों के नाम इसका आधार है। सीतामढ़ी में पत्थर के चट्टान में एक प्राचीन गुफा है।
पुजारी सीताराम पाठक कहते हैं कि वनवास के समय सीता इसी गुफा में रही थीं। यहीं लव कुश का जन्म हुआ था। सीतामढ़ी के मैदान में श्रीराम और लवकुश के साथ युद्ध हुआ था। गुफा के आगे तीन खंड में चट्टान है।
मान्यता है कि सीता यहीं धरती में समाई थी। कहते हैं कि गया में भगवान विष्णु का पल भर के लिए पैर पड़े थे, जिसके कारण विष्णु पद से ख्यात हुआ। इसी तरह सीता 12 साल तक यहीं रही थी, इसलिए सीतामढ़ी कहलाई। सीतामढ़ी का नाम पहले था सीता मरी :- सीता यहीं पाताल में समा गई थी। यानि सीता मरी थी। इसलिए पहले इसका नाम सीता मरी था। बाद में जब लोग गुफा में सीता और लवकुश की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करने लगे, तब सीतामढ़ी कहलाई। यानि सीता का मंदिर। तिलैया नदी ही प्राचीन तमसा नदी है। यही नहीं, सीतामढ़ी से 3 किमी की दूरी पर बारत गांव के पास बाल्मिकी श्रृषि का आश्रम है।
मुखिया नागेश कुमार कहते हैं कि बाल्मिकी श्रृषि चलते उनके गांव का नाम बारत पड़ा। बा यानि बाल्मिकी, र यानि रत और त यानि तपस्या है।
ग्रामीण विपुल कुमार कहते हैं बाल्मिकी श्रृषि का क्षेत्र रहा है इसलिए कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों के नाम बाल्मिकी श्रृषि के नाम पर है।
तिलैया नदी के पास श्रीराम की रूकी थी सेना:-
नदसेना निवासी कवि दीनबंधु कहते हैं कि तिलैया नदी के पास श्रीराम की सेना रूकी थी। इसलिए इसका नाम नदसेना है। वहीं कटघरा में हनुमान जी को बंधक बना लिया था। कष्टघरा था। बाद में कटघरा कहलाया। यही नहीं, श्रीराम जब युद्ध के लिए आए थे तब पहली दफा लखौरा में लव कुश को देखा था। इस जगह का नाम लखौरा पड़ा। लख यानि देखना और उर यानि हृदय। वहीं मोहगांय के समीप राम जी को बच्चों को देखकर मोह आया था, वह स्थल मोहगाय कहलाया।
रसलपुरा में युद्ध के समय में राशन की थी व्यवस्था:-
रसलपुरा में युद्ध के समय में राशन की व्यवस्था थी। पहले वह राशनपुरा था, बाद में रसलपुरा कहलाया। रसलपुरा के पास एक पेड़ में अश्वमेघ के घोड़ा को बांधा गया था, वह पेड़ अब पत्थर का शिला बन गया है। समीप में लौंद और कुसा गांव है। किवदंतियों के मुताबिक, लव और अवध को जोड़कर लौंद बना। शेखपुरा के पास कुसा गांव हैं। सीता बेरौटा स्थित दुर्गा पूजा के लिए जाती थीं। मां दुर्गा ने वर के आने यानि वर आउटा का आशीर्वाद दिया था वही बेरौटा कहलाया।