सरहद पर शहादत सिर्फ़ पुरुष की ही नहीं होती - News Point Hindi
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सरहद पर शहादत सिर्फ़ पुरुष की ही नहीं होती

सरहद पर शहादत सिर्फ़ पुरुष की ही नहीं होती। एक महिला बस देश के लिए शहीद होती है। ऐसी एक महिला पर लिखी कविता।

पारस प्रकाश सारस्वत, युवा कवि सह लेखक:-

अभी उन चूड़ियों की चमक बाक़ी है

अभी उस पाजेब की खनक बाक़ी है

अभी ये बच्चा चलना सीखा भी नहीं था

अभी से तुम्हारा जाना ज़रूरी तो नहीं था

आ जाओ कि अभी बचपन

सोने से पहले माँ कह गया है

आ जाओ

मेरे पास तुम्हारा बहुत कुछ रह गया है।

कई ख़त ऐसे हैं जो मैंने सँभाले ही नहीं

और, कई ख़त यूँही पड़े हैं

  • कभी पोस्ट ऑफिस में डाले ही नहीं

तुम्हारी याद में सिंदूर अब भी यूँही रखा है

वो बिंदी वो झुमका सबकुछ यूँ ही रखा है

तुम्हारी लगाई बेलें,अब छप्पर छूने लगी है

देखो, हमारे घर में हरियाली हर ओर होने लगी है

तुम्हारे जाने के ग़म में

ये दिल बहुत कुछ सह गया है

आ जाओ

मेरे पास तुम्हारा बहुत कुछ रह गया है

 

अब तुम्हारी कोई बात नहीं होगी

इस दिल में तुम्हारी कोई याद नहीं होगी

जो ज़रूरी था वो रिश्ता तुम निभा चुकी हो

तिरंगे में लिपटकर वापस आ चुकी हो

मेरा, इस बचपन का

मैं ख़्याल रख लूँगा

अपने दुखों को तुम्हारे फ़र्ज़ से

मैं ढक लूँगा

जब बड़ा होकर ये पूछेगा

माँ कहाँ है

मैं तिरंगा थमाकर बोल दूँगा

माँ यहाँ है

मैं सब कुछ कर लूँगा कोई कमी नहीं होगी

ये बचपन, मेरा जीवन किसी की आँखों में

कभी नमी नहीं होगी

एक झटके में मेरा सब कुछ

अचानक से ढह गया है

कुछ देर के लिए ही सही आ जाओ

मेरे पास तुम्हारा बहुत कुछ रह गया है।

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